( तर्ज- हरिका नाम सुमर नर )
जलनेवाली इस दुनिया में
क्यों बैठा है पागल ! तू ?
ऊठ खडा हो जागृत होकर ,
कदम बढाले आगल तु ॥ टेक ॥
धर्म यहाँका धर्म नहीं है
स्वारथ बाजी है सारी।
इन्सानियत खोकर अपनी ,
किसे मिली है बलिहारी ?
सेवा धर्म उठाले कर में ,
लेकर आतम का बल तु ॥ उठ ॥१ ॥
हिन्दु हो , इस्लाम रहे ,
या बुद्ध , ईसाई हो कोई ।
खुदा जानता ईमान सबका
क्यों आपस माँही ?
प्रेम यही कानून ख़ुदा का ,
इसी भक्ति को ले चल तू ॥ उठ ॥२ ॥
ईश्वर एक शान्तिका सागर ,
बिना उसीके सब होली ।
उसके बलपर कार्य उठा ले ,
होगी दुनिया अलबेली ।
कहता तुकड्या नव जीवन की ,
ध्वजा खडी कर निर्मल तू ||उठ || ३||
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